v.i.p.
तुम पांच साल में एक बार नज़र आते हो
हाथ जोड़कर मेरे वोट के लिए गिडगिडाते हो
झूठा मुस्कुराते हो
बेवजह खिलखिलाते हो
मेरे लिए ये पांच वर्ष में एक बार
सर्कस देखने जैसा होता है
तुम पर बड़ी हंसी आती है जब तुम
कई बार पांच साल में दो -तीन सर्कस दिखलाते हो
सत्ता में आने पर तुम कितना इतराते हो
अपने किये गए सारे वादे भूल जाते हो
'आम आदमी ' के नाम पर चुनाव जीतते हो
जीतकर उसके विकास के लिए नीतियां बनाते हो
आम आदमी का भला 'भला ' कंहा हो पाता है
परन्तु नेताजी तुम अवश्य फूलते जाते हो
भेडिये होते हो, हाथी बनते जाते हो
तुम्हारे मकान दूकान बढ़ते चले जाते हैं
तुम्हारे विदेशों में खाते खुल जाते हैं
तुम्हारे बच्चे वंहा पढने चले जाते हैं
वन्ही नौकरियां पाते हैं वंही के हो जाते हैं
या फिर वापस आकर तुम्हारी रियासत चलते हैं
तुम्हारी लुटिया डुबाते हैं
तुम उन्हें सियासत में ले आते हो
कि आओ अब देश कि लुटिया डुबाओ
तुम्हे शर्म नहीं आती है फिर भी
भ्रष्टाचार में लिप्त 'तुम चोरों कि टोली '
पांच वर्ष उपरान्त
फिर मेरे द्वार पर आती है
तुम रट्टू तोते कि भांति बकने लगते हो
तुम्हारी सफ़ेद पोशाक
तुम्हारे तन को तो ढक लेती है पर
तुम्हारे काले मन को न छुपा पाती है
मैं सोचता हूँ कि मैं कितना 'ख़ास ' हूँ
तुम मेरे सामने दुम हिलाते हो
नए पुराने सब करतब दिखलाते हो
फिर भी मैं रहता हूँ 'आम आदमी '
और तुम V.I.P. कहलाते हो
( मैं तो साधारण सा एक कवि हूँ पर मैं कभी गलती से जब तुम्हारी महफ़िल में होता हूँ तो तुम कैसे बगले झांकते हो , नज़रें चुराते हो , शर्मिंदा होने का नाटक करते हो )
BAHUT ACHHA LIKHA HAI (....................) MEN LIKHI PANKTIYA TO KAVITA SE BHI JYADA KHOOBSURAT HAI.
ReplyDeleteहकीकत बयां की है आपने ... उम्दा
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