29th Oct .. देर रात और जल्दी सुबह के बीच कभी ..
रात से बड़ी दूर कल सवेरा रहा
तेरी यादों का मेरे घर में डेरा रहा
पिघलती हुई रात के किनारों पर
एक ख्वाब तेरा और एक मेरा रहा
और न कंही जा सके कभी कदम मेरे
तेरी ही गली का हर वक़्त फेरा रहा
मैं बंध सा चला था बड़ी मजबूती से
नाज़ुक तेरी बाहों का जब घेरा रहा
वो जिसको भूलने की थीं तमाम कोशिशें
साथ हर वक़्त उसी शख्स का चेहरा रहा
रात से बड़ी दूर कल सवेरा रहा
तेरी यादों का घर मेरे डेरा रहा ..
thanks for reading
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