बदकिस्मती
मैं शायर बदनाम
शायरी की भी सबकी अपनी मुख्तलिफ समझ है
कोई कहे हमें चराग -ऐ-अंजुमन ,कोई बुझता हुआ दिया
उनकी महफ़िल में सिर्फ हंसी की खनक ही जचती है
लेकर मैं कैसे जाता वंहा , अपना झुलसा हुआ जिया
लेकर मैं कैसे जाता वंहा , अपना झुलसा हुआ जिया
मेरे ख़्वाबों ने भी न दिया मेरी आरज़ू का साथ
वो न बन सके मेरे , न मैं उनका हुआ किया
वो न बन सके मेरे , न मैं उनका हुआ किया
उनसे मैं सवाल न ही करता तो बेहतर होता
जवाब उन्होंने मुझको बेहद दुखता हुआ दिया
लिख लिख के उन्हें भेजता रहता हूँ पन्ने पे पन्ने
कभी मान ही जायें शायद मेरे रूठे हुए पिया
जवाब उन्होंने मुझको बेहद दुखता हुआ दिया
लिख लिख के उन्हें भेजता रहता हूँ पन्ने पे पन्ने
कभी मान ही जायें शायद मेरे रूठे हुए पिया
( कोई कहे हमें चराग -ऐ -अंजुमन ,
कोई बुझता हुआ दिया ..
शायरी की भी सबकी अपनी मुख्तलिफ समझ है... )
शायरी की भी सबकी अपनी मुख्तलिफ समझ है... )
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