shayari kya hai ? mujhse poochhte haiN log. mujhe dekh leejiye, dekh leejiye mere taur tareekoN ko. Philhal mujhe padh leeje. thoda andaza ho jayega aapko.ya phir apne ghar bula leejiye .ek shaam mere naam..shart hai ke aap lutfandoz ho jayeNge. kabhi sochta huN ke bewajah maujuda waqt meiN paida hue. Kisi badshaah ki baadshahat meiN rahe hote toh shayad hamara bhi kuchh naam hota. huzoor jaane deeje, shhayar se paalaa na hi padhey toh behtar hai.
Sunday, 30 October 2011
दरमियाँ ..
Saturday, 29 October 2011
Lakeer Ka Fakeer Nahi Main ..
सपने अपने बुनता हूँ
शहर मौसम
सब चुनता हूँ
बस
अपने दिल की सुनता हूँ ..
अपनी रहगुज़र पर
मंज़ूर है मुझको
घायल होना ,
फर्क नहीं पढता
किसी का होना
या न कायल होना ..
सामने से
सब कहता हूँ ,
मेरी उम्र भर की
भटकन का सिला है
मेरा शायर होना ..
मेरी उम्र भर की
भटकन का सिला है
मेरा शायर होना ..
Lakeer Ka Fakeer Nahi Main ..
sapne apne bunta hun
shahar mausam
sab chunta hun
bus
apne dil ki sunta hun ..
Apni rahguzar par
manzur hai mujhko
ghayal hona ,
Farq nahi padhta
kisi ka hona
ya na kayal hona ..
Saamne se
sab kehta hun ,
janta nahi main
kayar hona ..
Meri umr bhar ki
bhatkan ka sila hai
Mera Shayar Hona ..
Meri umr bhar ki
bhatkan ka sila hai
Mera Shayar Hona ..
Friday, 28 October 2011
Thursday, 27 October 2011
बदकिस्मती...
लेकर मैं कैसे जाता वंहा , अपना झुलसा हुआ जिया
वो न बन सके मेरे , न मैं उनका हुआ किया
जवाब उन्होंने मुझको बेहद दुखता हुआ दिया
लिख लिख के उन्हें भेजता रहता हूँ पन्ने पे पन्ने
कभी मान ही जायें शायद मेरे रूठे हुए पिया
शायरी की भी सबकी अपनी मुख्तलिफ समझ है... )
Wednesday, 26 October 2011
ENCOUNTER !!
कोई न कोई मजबूरी ज़रूर रही होगी उनकी ,,
न चाहते हुए भी उनको जाना पड़ा है /
पहचानता हूँ जब मुझसे झूठ बोलते हैं वो
सच जानकर हर बार सर हिलाना पड़ा है /
कहते हैं वो , ' तनहा ' से बेहतर कई हैं ,
तरस खाकर मुझपे उनको आना पड़ा है /
Koi Na Koi Majboori Zarur Rahi Hogi Unki,,
Na Chahte Huay Bhi Unko Aana Padaa Hai /
Ab Talak To Milte The Sirf Aadmiyon Se Wo ,
Bade Dino Baad Ek Shayar Se Pala Padaa Hai /
Pehchaanta Hun Jab Mujhse Jhooth Bolte Hain Wo
Sach Jankar Har Baar Sar Hilana Padaa Hai /
Kehte Hain Wo, "Tanha" Se Behtar Kai Hain ,
Taras Khakar Mujhpe Unko Aana Padaa Hai /
REINCARNATION
Tuesday, 25 October 2011
सोचता हूँ ..
KAASH MAIN KUCHH AISAA KARUUN
26-06-2009 09:59:51
Monday, 24 October 2011
KYA MAIN KUCHH KEH PAUNGA ..
जीवन की डगर पे तनहा चलना
बिलकुल न सह पाउँगा ,
डर के सहम के यूँ ही चलके
भीड़ में ग़ुम हो जाऊंगा,
एक कदम भी मेरा चलना
अब है एक सज़ा जैसा,
तुम जो रहोगी साथ तभी मैं
अपने सफ़र पे जाऊंगा ..
कहने की हैं जो कुछ बातें ,सोचता हूँ तुमसे कह दूँ ..
तुमसे जो मैं मिल पाया भी तो
क्या मैं कुछ कह पाउंगा,
बात समझ लेना तुम दिल की
जो मैं चुप रह जाऊंगा ,
नज़रों से अपनी सब पढ़ लेना
सुन लेना सब ख़ामोशी ,
फिर मैं पकड़कर हाथ तुम्हारा
प्रेम नगर ले जाऊंगा ..
Sunday, 23 October 2011
DANCING TO THE BEAT OF MY OWN DRUM !!
किनारों के पार
सुनते हैं
शोर गुल है बड़ा ,
रंगीनियाँ हैं भरपूर /
मैं न जाने क्यूँ
खामोश नदी सा
बह रहा हूँ
साहिलों से दूर दूर ..
KinaaroN Ke Paar
Sunte Hain
Shor Gul Hai Bada ,
RanginiyaN HaiN Bharpoor /
Main Na Jane KyuN
Khamosh Nadi Sa
Beh Raha Hun
SaahiloN Se Door Door ..
Saturday, 22 October 2011
जो माँगा वो न मिला ..
jo maangaa wo na milaa
24-06-2009 09:55:33
is jivan ko doob ke jee le ..
is jivan ko
doob ke jee le
zyada
kuchh na soch
is pal se
kya mil jata
us pal mein kya loch
uski dhun mein
yun na ho gum
chhorh de jana
idhar udhar
apne dil mein
usko basakar
milna ussay phir roz
sudh budh na kho
apni yun,
uski khatir
khud ko na kho
na dhoond usay
bahar naadan
apne bheetar khoj
jitni mehnat utna paya
jo na paya
uspar kya rona
apni kamiyon ko
dekh re pagle
kismat ka kya dosh
is jivan ko
doob ke jee le
zyada
kuchh na soch
bl thou dks
bl thou dks
Friday, 21 October 2011
SUKOON
Thursday, 20 October 2011
मुझे परवाह है ..
मुझे परवाह है ..
मेरे लिखे शब्द को पढ़ने वाले
“तुम ”
मैं सैलाब बाँध तुम
मैं सहरा बरसात तुम
मैं आग बर्फ तुम
मेरे लिए सिर्फ तुम ..
तुम तरन्नुम तुम ग़ज़ल
तुम रुबाई तुम नज़्म
तुम नहीं तो है बेवजह
मेरी लिखाई तुम्हारी कसम
मेरे वजूद के लिए तुम लाज़मी
मैं शायर मेरा अंदाज़ तुम..
गूंगे मेरे शब्द
जो न सुनो तुम
तुम्हारे बिन मैं ग़ुम
Wednesday, 19 October 2011
कभी देखना
कभी देखना
चाँदनी रात में तारों को
आकाश की चादर में
अठखेलियाँ करते हुए
और महसूस करना
अपने अरमानों को मचलते हुए
कभी देखना और सुनना
अलसाई-सी किसी दोपहरी में
गूँजती सन्नाटे की आवाज़
तुम्हें बुलाती हुई
निद्रा से जगाती हुई..
कभी देखना
तेज़ बहती नदी में
अपने ठहरे हुए अक्स को
तुम्हें निहारते हुए
राहत प्रदान करते हुए..
कभी देखना
चिड़ियों के बच्चों को
हरी घास पर फुदकते
तुमसे बिल्कुल बेखबर, निडर
अपनी मनमानियाँ करते..
कभी देखना
किसी गिलहरी को तेज़ी से
पेड़ की टहनियाँ चढ़ते उतरते
तुम्हें भी एक
उमंग में भरते हुए..
कभी देखना
मूसलाधार बारिश से डरकर
खिडकी के पास छिपी बिल्ली को
तुमसे उसे न भगाने का
आग्रह करते हुए..
कभी देखना
किसी फूल के ऊपर पड़ी
ओस की बूँद को
गुनगगुनाते हुए
मंद-मंद मुस्कुराते हुए,
उस उगते और डूबते हुए
सूर्य को भी देखना
जो तुम्हारा प्रहरी-सा बना
सदा तुम्हारे साथ है
तुम्हारा हमसाया बना
खिलखिलाते हुए..
सोचता हूँ क्या तुम
ये सब देखे भी पाओगे कभी
या यों ही व्यस्त रहोगे
अपनी मशीनी ज़िन्दगी में,
क्या तुम्हें कभी समय मिलेगा
कि तुम मेरे साथ आओगे
या यों ही तुम कल कल करते रहोगे
अपनी छोटी-सी ज़िन्दगी में..
पर तुम देखना
मैं तुम्हें याद दिलाता रहूँगा
अपने गीतों के बोलों के ज़रिए
क्योंकि
मेरी कविता के लिए आवश्यक है
कि तुम यह सब देखो
और मैं देख पाऊँ तुमको
जीवन के सही मायने जानते हुए
दिमाग के परे
सिर्फ़ अपने मन की बातें मानते हुए
मैं तुम्हें याद दिलाता रहूँगा..
तुम देखना।
४ जनवरी २०१०
mera jo daur tha..
23-08-2008 08:34:25
वो लौटकर अब नहीं आने वाला
अब न रहे तिलस्समी कहानियों के दिन
अब न कोई मोजज़ा होने वाला (mojzaa- miracle/चमत्कार )
मेरी ज़िन्दगी में एक ऐसा भी दौर था
उनका हर अंदाज़ काबिल -ए -गौर था
वो शख्स जो इतना शाद था कोई और था
मेरा न कोई ठिकाना न ठौर था
उसका जो दौर था वो कोई और था
समझोगे शायद ??
Tuesday, 18 October 2011
V.I.P.
v.i.p.
तुम पांच साल में एक बार नज़र आते हो
हाथ जोड़कर मेरे वोट के लिए गिडगिडाते हो
झूठा मुस्कुराते हो
बेवजह खिलखिलाते हो
मेरे लिए ये पांच वर्ष में एक बार
सर्कस देखने जैसा होता है
तुम पर बड़ी हंसी आती है जब तुम
कई बार पांच साल में दो -तीन सर्कस दिखलाते हो
सत्ता में आने पर तुम कितना इतराते हो
अपने किये गए सारे वादे भूल जाते हो
'आम आदमी ' के नाम पर चुनाव जीतते हो
जीतकर उसके विकास के लिए नीतियां बनाते हो
आम आदमी का भला 'भला ' कंहा हो पाता है
परन्तु नेताजी तुम अवश्य फूलते जाते हो
भेडिये होते हो, हाथी बनते जाते हो
तुम्हारे मकान दूकान बढ़ते चले जाते हैं
तुम्हारे विदेशों में खाते खुल जाते हैं
तुम्हारे बच्चे वंहा पढने चले जाते हैं
वन्ही नौकरियां पाते हैं वंही के हो जाते हैं
या फिर वापस आकर तुम्हारी रियासत चलते हैं
तुम्हारी लुटिया डुबाते हैं
तुम उन्हें सियासत में ले आते हो
कि आओ अब देश कि लुटिया डुबाओ
तुम्हे शर्म नहीं आती है फिर भी
भ्रष्टाचार में लिप्त 'तुम चोरों कि टोली '
पांच वर्ष उपरान्त
फिर मेरे द्वार पर आती है
तुम रट्टू तोते कि भांति बकने लगते हो
तुम्हारी सफ़ेद पोशाक
तुम्हारे तन को तो ढक लेती है पर
तुम्हारे काले मन को न छुपा पाती है
मैं सोचता हूँ कि मैं कितना 'ख़ास ' हूँ
तुम मेरे सामने दुम हिलाते हो
नए पुराने सब करतब दिखलाते हो
फिर भी मैं रहता हूँ 'आम आदमी '
और तुम V.I.P. कहलाते हो
( मैं तो साधारण सा एक कवि हूँ पर मैं कभी गलती से जब तुम्हारी महफ़िल में होता हूँ तो तुम कैसे बगले झांकते हो , नज़रें चुराते हो , शर्मिंदा होने का नाटक करते हो )
Monday, 17 October 2011
मेरी गोरी
फिरंगन , मैं और मेरे शहर वाले
उस गोरी चमड़ी वाली लड़की को सब
"उस छोकरे के साथ घूमने वाली फिरंगन "
के नाम से जानते थे ,
यही उसका नाम बन गया था उस शहर में
जब भी उसके बारे में बात होती
यही कहा जाता
"उस छोकरे के साथ घूमने वाली फिरंगन "
अजीब सी बात थी ना
की बात उसकी होती
और ज़िक्र "उस छोकरे " का
जैसे मेरे शहर वालों को
उस फिरंगन से कोई सरोकार नहीं था
बस मतलब था तो था "उस छोकरे " से
या शायद ये थी ईर्ष्या की 'वो छोकरा '
कैसे सभी सामाजिक मर्यादाओं को तोड़ते हुए
खुल्लमखुल्ला 'गुलछर्रे ' उड़ा रहा था ...
यह बात सत्य से कोसों दूर थी
मैं ऐसा कह सकता हूँ
क्यूंकि 'वो छोकरा ' मैं था
तब 'भारतीय पर्यटन ' ने
'अतिथि देवो भव' का नारा नहीं छेड़ा था
उसके -मेरे मिलने के हालात का ज़िक्र
फिर कभी किसी और कविता में ,
यंहा सिर्फ ये सुनो की उसे मेरी ज़रूरत थी
और मुझे ज़रूरत थी
मेरे देशवासियों द्वारा उसके साथ किये दुर्व्यवहार का
खामियाजा चुकाने की ...
इस प्रयास में 'वो छोकरा ' और "वो फिरंगन '
बन गए थे अति -विशिष्ट -घनिष्ट मित्र
क्या संस्कृति क्या देश , क्या भाषा क्या वेश
आत्मीयता से भरपूर जीवन को जीते
एक दूजे की मधुर वाणी का रस पीते
वासना से दूर , हवास के परे
खोलते रिश्तों की नयी परतें
परिस्थितियाँ कुछ यूं बनी
की उन्हें बिछड़ना पडा
फैसला था कडा
पर उनको ऐसा करना पडा
उसका जहाज़ जब तक आँखों से ओझल न हुआ
मैं उसे देखता रहा
मैं हिंदी में कुछ सोचता रहा यंहा
और वो अपनी भाषा जर्मन में वंहा
शब्द -शब्द मैंने उसे यही लिखा
शब्द -शब्द उसने मुझे यही लिखा
शब्द शब्द जो हमने लिखे थे....
'' प्रेम किसी भूगोल के नक़्शे सा नहीं है
ये उम्र , धर्म , देश सबसे परे है
फर्क नहीं पड़ता जो
साथ जिया -बिताया वक़्त कम था
दो व्यक्तियों का पूरा जीवन
कट सकता है उन पलों को यादकर "
इस -से पहले की मैं ये कहानी
अख्बार को लिख पाता
सरहदों के पार का
प्रेम का एक सन्देश पाठकों को दे पाता
शहर के अखबार ने ये छापा ..
"उस छोकरे के साथ घूमने वाली फिरंगन "
उस छोकरे को ठुकराकर चली गयी है
छोकरे की संकीर्णता , छोटे विचारों
और एक घुटन -भरी ज़िन्दगी से छुटकारा पा
वो अपने देश लौट गयी है "
( काल्पनिक)