Tuesday, 20 December 2011

शाम से हसीं आप हैं ..



आपके साथ ने,    आपकी बात ने ख़ास बनाया/
यूँ तो शामें    रोज़ आती हैं    और चली जाती हैं /
पता चला मुझे जो साथ चला आपके  मैं दो कदम/
कैसे रक्स करती है हवा , फिज़ा कैसे गुनगुनाती है .
( रक्स = dance / नृत्य )

Friday, 16 December 2011

qaatil ki nigaah .. subhanallah !!

बरसों  बेरुखी  के  बाद  वो देखकर फिर मुस्कुरा उठे
और फिर हमने उनसे वफ़ा की उम्मीद बाँध ली




वो खुद मोहब्बत है प्यार की मिसाल है फिर भी
कहते हैं लोग कि     उन्होंने ही मेरी जान ली




वो अब नादाँ कंहा रहे समझते हैं अच्छा बुरा
एक छोड़कर  उन्होंने मेरी  बातें सारी मान लीं 






मेरे किसी गुमनाम ख़त का न मिला मुझको जवाब
जानता हूँ मैं कि उन्होंने लिखावट मेरी पहचान ली






( बरसों  बेरुखी  के  बाद  वो देखकर फिर मुस्कुरा उठे
और फिर हमने उनसे वफ़ा की उम्मीद बाँध ली  )

Tuesday, 13 December 2011

मैं चलूँ बिन बैसाखी ..

tanha's space:Write What Your Heart Tells You To...

Who Doesn't Need INSPIRATION??

Oh yes, all of us need fuel to run.This life can be very harsh as all of us have felt some time or the other. But we were not born to simply while away our time on this planet. We have imagination that can fire us up to always strive for the better.My first message to you in this regard is- don't be overwhelmed by laziness.And when you are chasing your dreams remember not to go after worthless pursuits. Tell yourself that you will make each moment count.There will be obstacles on the way, there will be challenges but never lose heart. All of us make mistakes but how many of us learn from them. Learn from your mistakes.I want to quote the great Michael Jordan here. He said,'' I can accept failure.Everyone fails at something.But I can't accept not trying.''
 

 
खुद ही चल पड़े हैं जानिबे मंजिल अब
हमको नए सहारों की तलाश नहीं है

किसी की याद से कर लेते हैं हर ज़र्रा रोशन
अब अंधेरों में चरागों की तलाश नहीं है

निगाहें मिलकर खिला लेते हैं फूल मन में
हरगिज़ अब बहारों की तलाश नहीं है

क्या देखें उनके शहर से चले जाने के बाद
हमको अब नज़ारों की तलाश नहीं है

"तनहा" की किताब का कुछ तो हुआ असर
उनको अब तरानों की तलाश नहीं है

(खुद ही चल पड़े हैं जानिबे मंजिल अब
हमको नए सहारों की तलाश नहीं है)

Saturday, 10 December 2011

TIME IS P R E C I O U S ..




अपने हालात  बदलने  का 
ग़र तुझमें हौसला है
तो उठ , अभी उठ
देर न कर
वक़्त कम है ..


तेरी ज़िन्दगी को न कर दें
हालात ये बेकाबू
खुदको काबू में कर
ए दोस्त
वक़्त कम है ..

फैला सके तो फैला दे
तू प्यार हर तरफ
किसी से नफरत न कर
जान ले
वक़्त कम है ..

आते थे मिलने मुझसे
हर शाम वो शौक़ से
आते ही कहते 
"जाना है जल्दी
वक़्त कम है " ..

कोई आया साथ न
जब मिन्नतों के बाद भी
"तनहा" ही चल पड़ा हूँ
सफ़र में
वक़्त कम है ..     

Tuesday, 6 December 2011

khamosh rahun to behtar hai ..

चाहा कब न था कुछ करना
पर ज़िन्दगी से लड़ते लड़ते
लरज़ गयी है धड़कन धड़कन
बिख गया है लहू लहू ..


तन्हाई में रोना बेहतर है
उकता गया हूँ हुजूम में
किससे क्या क्या सुनूं सुनूं
किससे क्या क्या कंहू कंहू ..


इस दौडती भागती दुनिया में
मुझ जैसों का ठिकाना क्या
मैं नादाँ निपट आवारा
मौजे जज़्बात में बहूँ बहूँ ..

रिश्ते तुम्हारे होंगे हज़ार
मेरा दुनिया से बस रिश्ता एक
दुनिया करे है ज़ुल्म बराबर
और मैं चुपचाप सहूँ सहूँ ..

 
चाहा कब न था कुछ करना
पर ज़िन्दगी से लड़ते लड़ते
लरज़ गयी है धड़कन धड़कन
बिख गया है लहू लहू ..
 

Monday, 5 December 2011

Be Happiness Personified !


दिल  तुम्हारा  जो  कह  रहा  है  उसकी  सुनो
इर्द -गिर्द  अपने  एक  खुशगवार  मंज़र  बुनो
कहो  अलविदा  तल्खी  और  खलिश  को
कुछ  ख्वाब  मुलायम  से  बारीक  से  चुनो  


dil tumhar jo keh raha hai uski suno
ird-gird apne ek khushgawar manzar buno
kaho alvida talkhi aur khalish ko
kuchh khwab mulayam se bareek se chuno 

Friday, 2 December 2011

ज़िन्दगी के बाज़ार में ..


जिस बाज़ार में देखो सबको कुछ न कुछ मिला 
दिल के आराम का मुझको   सामान न मिला      


 आखरी सांस तक वो बस लड़ता ही रहा  
उसे ज़िन्दगी का कोई सफ़र आसान न मिला


सुकूने दिल के लिए क्या कुछ न किया
शहर-दर-शहर घूमता रहा आराम न मिला


मुरीदों के दिलों में महफूज़ था सब लिखा हुआ
किसी दुकान में तनहा का कलाम न मिला  


Thursday, 1 December 2011

कर क्या रहे हो ये तुम ?..

अपने ग़म को 
तुम क्यूँ संभाले बैठे हो
काम पड़ा है कितना
और तुम 
सुस्ताने बैठे हो ..

रंग फ़िज़ाओं में
फैले से हैं
बेशुमार
अपने जीवन को 
फिर क्यूँ 
बेरंग बनाये बैठे हो ..

देखो कैसी 
ले ली है
इस ज़माने ने करवट
तुम भी हद
करते हो मियां 
यूँ शर्माए बैठे हो ..

आवारा शायर की 
दुनिया को
ठीक आपने 
वीरान किया,
छोड़ तनहा को
अब तुम फिर
क्यूँ उकताए बैठे हो ..     

काम पड़ा है कितना
और तुम 
सुस्ताने बैठे हो ..

Wednesday, 30 November 2011


मेरा 
कोई ख्वाब
मुकम्मल 
  कभी
होता नहीं /
मेरे लिए
हर शब् 
नींद
एक सज़ा है 


Tuesday, 29 November 2011

IT MUST HAVE BEEN LOVE ..


जो न आँखों से कहा गया
और न लफ़्ज़ों से हुआ बयाँ
होता है दीवानों के बीच जो
तेरे मेरे दरमियाँ हुआ ..

जो न आँखों से कहा गया 

ख़ामोशी वो सब कह गयी
जो लफ्ज़ कभी न कह सके
सैलाबे  जज़्बात यूँ उमड़ा
न तुमसे रहा गया 
और न हमसे रहा गया ..

जो न आँखों से कहा गया

तेज़ इस  वक़्त को हम रोक न पाए 
कुछ यूँ हालात हुए हम सोच न पाए
बाहों में भर लो , कंही जाने न दो
ना तुमसे कहा गया
और ना हमसे कहा गया .. 
    

जो न आँखों से कहा गया
और न लफ़्ज़ों से हुआ बयाँ
होता है दीवानों के बीच जो
तेरे मेरे दरमियाँ हुआ ..

Friday, 25 November 2011

Terrace of a dilapidated monument...you and me...


किसी अजनबी छत की मुंडेर पर
इक दूजे का परिचय पाते
मैं और तुम /
हम तुम हुए कब के अपरिचित
और वो छत  आज भी
कितनी जानी पहचानी ..   
=========================

उस खंडहर-नुमा इमारत की
छत की मुंडेर पर
तेरा मेरा सबसे छुपकर मिलना
वो रोजाना तार्रुफ़ का बढ़ते चले जाना
कभी सुबह तो कभी
शाम को मिलना ..
मेरे सवाल तेरे जवाब
मेरे जवाब तेरे सवाल
वस्ल में
सबका बिखरना
शाम का पिघल जाना
नशीली रात की आग़ोश में
हर शब तेरा
नए रंगों में निखरना ..

 



Thursday, 24 November 2011

ये भी उनकी इक अदा ठहरी ..


जो कहकर गए थे 
मुझसे कभी न बोलेंगे  /
अब सारे ज़माने से
मेरी बात करते हैं /
और ऐसा  करके वो
 जतला ही   देते   हैं   /
कि वो अब भी मुझको
कितना याद करते हैं ..















Monday, 14 November 2011

क्या कहूँ उनके बारे में ??


वो जो पास आके बैठा किये मेरी तन्हाई में /
मैं डूबा किया उनकी आँखों की गहरायी में ..

मेरे कानों में मिसरी सी घुल जाती है  सदा
मैं झूम जाता हूँ  उनके लफ़्ज़ों की शहनाई में..

राहत अफ्ज़ा है  ये  जो भी है  हमारा राबिता:
सुकूने ज़िन्दगी है  उनकी जुल्फों की परछाई  में..

मेरे लफ़्ज़ों  सी है  साफ़गोई उनकी अदाओं में 
मेरे शेरों की सी शरारत उनकी अंगड़ाई में..

तनहा को वो रखना चाहते हैं सबसे छुपाकर
मिलना चाहते हैं  तो बस हरदम तन्हाई में..   


( वो जो पास आके बैठा किये मेरी तन्हाई में /
मैं डूबा किया उनकी आँखों की गहरायी में ..)
 

Sunday, 13 November 2011

KUCHH KEHNAA BHI KOI JURM HO JAISE...



by Tanha Ajmeri on Saturday, August 21, 2010 at 7:31pm
कुछ  कहना  भी  कोई  जुर्म  हो  जैसे ...

दौड़ना  बन  चुका  है  निज़ाम   यंहा  का 
आराम  से  चलना  बड़ी  मुश्किल  पर ,
धूप  का  है  चार  सू  दबदबा 
है  छाँव  यंहा  बड़ी  मुश्किल  पर .

मौसम  में  भी  अब  घुल  चुका  है 
गुबार  ज़माने  भर  का  देखो ,
गुलिस्ताँ  गुलिस्ताँ , कुम्हलाया  कुम्हलाया 
अब  है  बरसात  यंहा  बड़ी  मुश्किल  पर .

हर  शख्स  हर  तरफ  करे  मनमानी 
सुनने  को  कोई  भी  तैयार  नहीं ,
किस -किस  को  भला  क्या  क्या  समझायें 
हैं  अल्फाज़  यंहा  बड़ी  मुश्किल  पर .

ग़लत  देखो  या  देखो  बुरा  तुम 
और  ख़ामोश  रहो  तो  बेहतर  है ,
न  पंहुचेगी  तुम्हारी  सदा  कंही  भी 
है  ऐतराज़  यंहा  बड़ी  मुश्किल  पर .

धूप  का  है  चार  सू  दबदबा 
है  छाँव  यंहा  बड़ी  मुश्किल  पर .






KUCHH KEHNA BHI KOI JURM HO JAISE...


Friday, 11 November 2011

सफ़र ..





सफ़र की गर्द से डरकर
मैं कभी चुप बैठा नहीं
फर्क नहीं पड़ा
जो सिर्फ 
धूप ही मिली
मिला कभी साया नहीं ..


मुझको मालूम नहीं
होता है कैसा
किसी के पीछे चलना
मैंने खुद को 
किसी क़तार में
खड़ा कभी पाया नहीं ..

 











R U I N S ...



गुलों की चाह  में
निकले थे थोडा आगे
वो डरकर सिमट गए खुद में
मेरी राह में बिछा कांटें  ..


निभ न सके उनसे
मुझसे उल्फत के नाते 

न सलाम न दुआ कोई
और  न मिलना आते जाते ..  
 


मोहब्बत की सौगातें 
तनहा दिन तनहा रातें
चंद मचलते अरमां
ढेरों अधूरी बातें ..


चंद मचलते अरमां
ढेरों अधूरी बातें ..





Wednesday, 9 November 2011

जाते जाते ..

जाते  जाते  

         उनकी  परेशानियां         
                    देखकर  मुझको  पड़  गए  पेशानी  पे  उनकी  बल
                    बात  पुरानी  सी  कोई  शायद  उनको  याद  आयी 
                    इस  बादे   नसीम  से  कुछ  तो  हमारा   रिश्ता  है
                    यादें  गुज़स्ता  तमाम  जो  अपने  साथ  लायी 
                    न  जाने  यूं  उनपे  क्या  थी  बन  आयी ऐसी
                    जो  उनको  इस  तरह  से  यंहा  खींच  लायी
                    ज़माने  की  हर  शै  को  जो  उन्होंने  बदलते  देखा
                    उनको  "तनहा " की  मोहब्बत  बड़ी  याद  आयी                           
     
                    उनको  "तनहा "  की  मोहब्बत  बड़ी  याद  आयी   . .
                                                              Tanha Ajmeri

चलते चलते



 उन्होंने   दिया  इनाम 
               
 
                             ज़माने के सितम का तो पता भी न चला ज़रा                   
                    उनसे जो मिला दर्द ,  मुझसे वो न सहा गया 

                  

                    उनको  ढूँढता  कैसे  मैं  इतनी  तब्दीलियों  में
                    घर  उनके  जो  जा  रहा  था  वो  रस्ता  बदल  गया
               
                     एक  अश्क़  उनकी  भी  आँखों  से  छलक  पढ़ा
                    सुनकर  मेरी  एक  ग़ज़ल  उनसे  न  रहा  गया 
                                    
                    
                    उनसे  हमको   खिताब   एक   और   मिल   गया   नया
                    निकम्मों  की  जमात  का  हमको  शेहेंशाह  कहा  गया 

                    रुस्वाईओं  के  शहर  से  दूर   निकल  आया  "तनहा "
                    उसके   बाद   भूलकर   भी   वो   न   उधर   गया
                   उसके   बाद   भूलकर   भी   वो   न   उधर   गया ..

Tuesday, 8 November 2011

DISTANCE ..



आग इधर भी
आग उधर भी ..
बर्फीली पहाड़ियां 
दरमियाँ ..
कितने बेबस 
मैं और तुम ..


Monday, 7 November 2011

मैं ऐसा लिक्खूंगा ..

मैं  ऐसा  लिक्खूंगा                                                                     

                 सोचता  हूँ  ग़म -ऐ -दौरा  से  जिस  दम  निबटूंगा
                 अपने  रूठे  हुए  साजन  के  लिए  एक  नज़्म  लिक्खूंगा 

                 मुझे  नहीं  थीं  कभी  भी  बदगुमानियां  उनसे
                 उनको  जो  था  मुझसे , मैं  वो  उनका  भरम  लिक्खूंगा
                 ज़माने  ने  रंजिश  से  भरकर  राह  में  बिछाए  कांटे
                 मुझे  जो  मिल  गयी  मंजिलें , उसे  मौला  का  करम  लिक्खूंगा
                 पूछा  जो  ऊपर  वाले  ने  'मुझको  कंहा दफनाया  जाए '
                 बिन  आँख  झपकाए  मैं  एकदम  से  अपना  वतन  लिक्खूंगा
                 हुजूम  में  रहकर  कुछ  भी  न  सीखा  ये  शायर  "तनहा "
                 सहरा  सी  वीरान  डगर  को  मैं  अपना  चमन  लिक्खूंगा    

क़यामत QAYAMAT ..



देख तेरे आने से जो हूँ मैं मौत के क़रीब /
सोच मेरा क्या होगा तेरे जाने के बाद  

Dekh Tere Aane Se Jo HuN MaiN Maut Ke Kareeb /
Soch  Mera  Kya  Hoga    Tere  Jane  Ke  Baad

Sunday, 6 November 2011

भटका भटका ही रहा फिर भी .....


भटका  भटका  ही  रहा  फिर  भी .....

by Tanha Ajmeri on Saturday, December 12, 2009 at 9:१४अम
बेख़ौफ़  होकर  निकल  तो  आया  दूर  सफ़र  में 
डर  सा   फिर   कैसा   इस  अनजान  शहर  में 


कश्ती  में  दम ,नाखुदा  के  इरादे  बुलंद 
आज  इरादा  है  लड़ने  का  भंवर  से 


कंही  साथ  ही  न  चला  जाऊं  खिंच  के  कभी 
एक  अजीब  सी  कशिश  है  समंदर  की  लहर  में 


उनकी  तरफ  से  अब  कोई  पैग़ाम  नहीं  आता 
जा  चुके  हैं  दूर  जो  अपने  वतन  से 


तनहा  पर  कीजिये  कुछ  ज़ुल्म  और  नए 
अब  वो  मज़ा  कंहा  रहा  पुराने  सितम  में 


बेख़ौफ़  होकर  निकल  तो  आया  दूर  सफ़र  में 
डर  सा  फिर  कैसा  इस  अनजान  शहर  में 

TANHA AJMERI



BHATKAA BHATKAA HI RAHAA PHIR BHI.....

by Tanha Ajmeri on Saturday, December 12, 2009 at 9:14am
Bekhauf hokar nikal to aayaa duur safar mein
Darr sa phir kaisaa is anjaan shehar mein


Kashti mein dum,naakhudaa ke iraade buland
Aaj iraadaa hai ladne ka bhanwar se


Kanhi saath hi na chalaa jaaun khinch ke kabhi
Ek ajeeb si kashish hai samandar ki lehar mein


Unki taraf se ab koi paigham nahi aataa
Ja chuke hain duur jo apne watan se


TANHA par keejiye kuchh zulm aur naye
Ab wo mazaa kanha raha purane sitam mein


Bekhuf hokar nikal to aayaa duur safar mein
Darr sa phir kaisaa is anjaan shehar mein

TANHA AJMERI

Saturday, 5 November 2011

तुम आज़ाद हो . O woman you are not weak !

सोचता हूँ कि तुम्हारी तालीम क्यूँ ज़ाया हो /
तुमको भी हासिल हो वो जो सबने  पाया हो ..

किसी को भी,
हाँ - किसी को भी
हक़ नहीं है -

तुम्हारे जीवन में ज़हर घोलने का 
तुमसे ऊंची आवाज़ में बोलने का
तुम्हारे जज़्बात को तोलने का
तुम्हारी राह का रुख मोड़ने का ..

तुम्हारे लहू का हर क़तरा बस तुम्हारा है
तुम्हारी हर सांस पर बस हक़ तुम्हारा है

तुम्हारी मर्ज़ी के खिलाफ तुम्हे पकड़ा नहीं जा सकता
गुलामी कि जंजीरों में तुम्हें जकड़ा नहीं जा सकता ..

तुम्हें डरने कि कोई ज़रूरत नहीं है 
लाचारी कि तुम्हारी कोई सूरत नहीं है ..

तुम न भूलना ये कभी भी
कि तुम कोई क़ैदी नहीं हो ..

तुमको हर हाल में
याद रखना ही होगा -
कि तुम आज़ाद हो
तुम आज़ाद हो .. 

   

Friday, 4 November 2011

कुछ और सताओ मुझे

Main Shabd Sur Tum continues.. 

19-08-2008 19:08:32
                      

                   कई   हज़ार  ज़ुल्म  और  कर  सकते  हो  मुझपर
                   बर्दाश्त  करने  का  अभी  मुझमें    और  मादा  है 
                   क्यूँ  ख़त्म  कर  दूँ  इश्क  के  अफ़साने  को  यंही  पर
                   अभी  तो  इसका  सुरूर  मुझपर  चढ़ा    आधा  है
                   तंगी -ए -वक़्त  पे  रोते  देखा  है  मैंने  सभी  को
                   और  देखो  तो  मेरे  पास  वक़्त  कितना  ज्यादा  है
                   लो  ढल  गयी  है  शाम  भी ,अब  कोई  देखता  नहीं  है
                   अब  क्यूँ  नहीं  हो  पूछते    मेरा  क्या  इरादा  है
                   हासिल   न   हुई   उल्फत   तो   कोई   बात   नहीं   है
                   हर  ग़ज़ल  और हर  नज़्म  "तनहा " की  राधा  है
                   Har ghazal har nazm tanha ki radha hai
                                                                Tanha Ajmeri
  kuchh aur sataao mujhe  
                   Kai  hazaar zulm aur kar sakte ho mujhpar
                   Bardaasht karna ka abhi mujhme aur maadaa hai
                   Kyun khatm kar duun ishq ke afsaane ko yanhi par
                   Abhi to iska suroor mujhpar chhadaa aadhaa hai
                   Tangi-e-waqt pe rote dekha hai maine sabhi ko
                   Aur dekho to mere paas waqt kitna zyada hai
                   Lo dhal gayi hai shaam bhi,ab koi dekhta nahi hai
                   Ab kyuun nahi ho pochhate mera kya iraadaa hai
                   Haasil  na  hui  ulfat  to  koi  baat  nahi  hai
                   Har ghazal har nazm "Tanha" ki Radha hai
                   Har ghazal har nazm tanha ki radha hai
                                                                Tanha Ajmeri

Kaun hai aakhir V I P ?

OUR TIMES

 

02-08-2008 13:37:14
Never before in the history of mankind were we forced to endure the hardships that we encounter today in our day-to-day life.And this is despite all technological advancements and luxuries that a man has at his disposal. One doesn't have to be an expert at rocket science to decipher what is wrong. Just look around and it will be clear to you. The values are disintegrating and the morals are declining. This is on the social front. What about terrorism,corruption,global warming,environmental degradation and other more pressing issues of our times? The work being done in the name of overcoming all problems is simply pathetic. These policy makers make me want to laugh or is it 'Cry'. A poem  'VIP' was born. ( Read the post dtd. 18th Oct. 2011 )
So what does a man do in such a bleak scenario? Don't fret and frown. JUST STAY CALM. Work on your own personality. Emerge stronger out of all crises.Don't panic. Don't allow your own life to go to dogs. Hold the reins of your own life firmly so that you always travel on the right path and in the right direction. Do your own little bit to make this world a better place in which to live.



मैं और तुम ..

मैं और तुम ..     
 
आजकल वही पल बनकर रह गए हैं सबसे सुनहरे /
हर शाम   हौले से आकर     वो जिन में रंग भरे है ..

Thursday, 3 November 2011

GHAZAL

GHAZAL

by Tanha Ajmeri on Tuesday, January 4, 2011 at 8:54am
 
सो रखे हैं  सब लोग  अभी  मेरे शहर के  ,

सो रखे हैं  सब लोग  अभी  मेरे शहर के  ,  
माहौल-ए-फुगाँ   होगा जंवा  थोडा ठहर के /

उन सफीनों को   ज़रा भी   खबर न हुई   ,
जिनके लिए  लड़ता रहा  कोई लहर से /

 भागता जा रहा है डरा सा ये मुसाफिर क्यूँ   ,
  कोई तो बचा ले इसे ज़माने के कहर से /

 दिल से न बन सका कोई यंहा मेहमान किसीका   , 
  पीता रहा हर शख्स यंहा प्याले ज़हर के / 

कब ख़त्म होगा तमाशा घुटन औ जलन का   ,
पूछे तो सही जाके कोई हाकिमे शहर से /

 सो रखे हैं  सब लोग  अभी  मेरे शहर के,
    माहौल-ए-फुगाँ   होगा जंवा  थोडा ठहर के... 

माहौल-ए-फुगाँ / फगां = atmosphere of distress and lamentation (here also..hustle bustle of life)
सफीना= boat     
  हाकिमे शहर = ruler of the city

Wednesday, 2 November 2011

WAITING ...






उस शख्स का इंतज़ार न जाने और कितना रुलाएगा /
जो कहकर भी नहीं गया की वो आएगा या न आएगा

GHAZALS


28-09-2008 09:26:29

  
 
मैं  नहीं  लिख  सकता  ऐसा 
 
 मुझे  ही  कुछ  वक़्त  के  साथ  चलने  का  शऊर  न  था
फिर  मैं  कैसे  इस  वक़्त  को  बेरहम  लिख  दूँ   /

मैंने  ही  शायद  उसे  समझने  में  कोई  भूल  की  हो
तो  कैसे  उस  शख्स  को  अब  मैं   बेरहम  लिख  दूँ /

तोहफा  क्या  दूँ  तुझको       इस  उलझन  में  हूँ
नाम  तेरे   आज  मैं  अपने  सारे  जनम  लिख  दूँ /

यूं  बस  गए  हो  तुम  जाने  का  नाम  लेते  नहीं
सोचता  हूँ  नाम तुम्हारे कुछ  दिल  का  किराया  लिख  दूँ /

और     कैसे  लिख  दूँ  की  अब  वो  मेरे  नहीं  हैं
जो  दिल  में  बस  गया  हो  कैसे  उसको  पराया  लिख  दूँ
......................................................................................
 
कुछ  तो  बदला  है 
 
 बहुत  पहले  एक  हसीं  मंज़र  से  हुआ  था  तारुफ़
 अब  न  जाने  कंहा      वाँ  जाने  की  राह  खो  गयी /

 रेत  पर  बना  के  आशियाँ  लिख  दिया  था  नाम  अपना
 ज़ालिम  लहर  आकर  साहिल -ए -समंदर  को  धो  गयी /

 देखता  रहा  उनको  रकीब  के  साथ  रुखसत  होते
 होंठ  मुस्कुराते  रहे  पर  मेरी  ये  आँखें  रो  गईं /

 सफ़र  तो  वही  है  हमेशा  से  जो  रहा  है  कठिन
 बस  जांबाज़  मुसाफिरों  की  इस  पर  कमी   हो  गयी .
..................................................................................
 
Tanha Ajmeri  
  बस  जांबाज़  मुसाफिरों  की  सफ़र   पर  कमी   हो  गयी . ...

Tuesday, 1 November 2011

AAJKAL ..

आजकल ..

मेरे उनके दरमियान
ख़ामोशी सी
ये तारी है ,
मेरे दिल
और उनके
दिमाग के बीच
एक जंग सी जारी है   ..

तारी है = छाई है

Sunday, 30 October 2011

दरमियाँ ..


                                                                                   29th  Oct .. देर रात और जल्दी सुबह के बीच कभी ..

रात से बड़ी दूर कल सवेरा रहा 
तेरी यादों का मेरे घर में डेरा रहा 

पिघलती हुई रात के किनारों पर 
एक ख्वाब तेरा और एक मेरा रहा

   और न कंही जा सके कभी कदम मेरे
   तेरी ही गली का हर वक़्त फेरा रहा 

मैं बंध सा  चला था बड़ी मजबूती से
  नाज़ुक तेरी बाहों का जब घेरा रहा 

वो जिसको भूलने की थीं तमाम कोशिशें  
साथ हर वक़्त उसी शख्स का चेहरा रहा  

रात से बड़ी दूर कल सवेरा रहा 
तेरी यादों का घर मेरे डेरा रहा ..

Saturday, 29 October 2011

Lakeer Ka Fakeer Nahi Main ..



लकीर  का  फ़कीर  नहीं  मैं  ..

सपने  अपने  बुनता  हूँ 
शहर  मौसम 
सब  चुनता  हूँ
बस 
अपने  दिल  की  सुनता  हूँ  ..




अपनी  रहगुज़र  पर 
मंज़ूर  है  मुझको 
घायल  होना  ,
फर्क  नहीं  पढता 
किसी  का  होना
या  न  कायल  होना  ..


सामने  से 
सब  कहता  हूँ  ,
जानता    नहीं  मैं 
कायर  होना  ..


मेरी  उम्र  भर  की
                           भटकन  का  सिला  है 
                                                          मेरा  शायर  होना  ..




मेरी  उम्र  भर  की
भटकन  का  सिला  है 
मेरा  शायर   होना  ..

Lakeer Ka Fakeer Nahi Main ..

sapne apne bunta hun
shahar mausam 
sab chunta hun
bus 
apne dil ki sunta hun ..




Apni rahguzar par
manzur hai mujhko
ghayal hona ,
Farq nahi padhta
kisi ka hona
ya na kayal hona ..


Saamne se 
sab kehta hun ,
janta nahi main
kayar hona ..


Meri umr bhar ki
bhatkan ka sila hai 
Mera Shayar Hona ..




Meri umr bhar ki
bhatkan ka sila hai 
Mera Shayar Hona ..


Friday, 28 October 2011

Life can be a beautiful painting ..


मेरे मुसव्विर ने
मेरी ज़िन्दगी को 
कुछ यूँ
रंगों से भर दिया /
सारे ज़माने को 
जला कर
मेरा दुश्मन
ही कर दिया /

कुछ तो
रहने देता  वो
मेरे लिए भी
तल्खियां /
ये क्या
कि मेरे लिए
वीराने को भी
गुलशन कर दिया .       
                                                   मुसव्विर    :  चित्रकार ,  तल्खियाँ   :  कडवाहट, कटुता         


Thursday, 27 October 2011

बदकिस्मती...

  बदकिस्मती  
     मैं शायर बदनाम 
                   
                   शायरी   की   भी   सबकी  अपनी   मुख्तलिफ   समझ   है
                        कोई  कहे  हमें  चराग -ऐ-अंजुमन ,कोई  बुझता  हुआ  दिया  

                        उनकी  महफ़िल  में  सिर्फ  हंसी  की  खनक  ही  जचती  है
                        लेकर  मैं    कैसे  जाता  वंहा , अपना झुलसा  हुआ  जिया   


                        मेरे  ख़्वाबों  ने  भी  न  दिया  मेरी  आरज़ू  का  साथ
                        वो  न  बन  सके  मेरे , न  मैं  उनका  हुआ  किया 


                        उनसे  मैं  सवाल  न  ही  करता  तो  बेहतर  होता
                        जवाब  उन्होंने  मुझको  बेहद  दुखता  हुआ  दिया 

                       
                         लिख लिख के उन्हें भेजता रहता हूँ पन्ने  पे पन्ने 
                          कभी मान ही जायें   शायद मेरे    रूठे  हुए पिया  
                      (   कोई  कहे  हमें  चराग -ऐ -अंजुमन ,
                    कोई  बुझता  हुआ  दिया ..
                              शायरी   की   भी   सबकी  अपनी   मुख्तलिफ   समझ   है...  )

         

Wednesday, 26 October 2011

ENCOUNTER !!




कोई  न  कोई  मजबूरी  ज़रूर  रही  होगी  उनकी ,,
न  चाहते  हुए   भी  उनको  जाना  पड़ा  है  /

अब  तलक  तो  मिलते  थे  सिर्फ  आदमियों  से  वो  ,
बड़े  दिनों  बाद  एक  शायर  से  पाला पड़ा है  /


पहचानता   हूँ  जब  मुझसे  झूठ  बोलते  हैं  वो 
सच  जानकर  हर  बार  सर  हिलाना  पड़ा  है  /

कहते  हैं  वो , ' तनहा ' से  बेहतर  कई  हैं  ,
तरस  खाकर  मुझपे  उनको  आना  पड़ा  है  /




Koi Na Koi Majboori Zarur Rahi Hogi Unki,,
Na Chahte Huay Bhi Unko Aana Padaa Hai /

Ab Talak To Milte The Sirf Aadmiyon Se Wo ,
Bade Dino Baad Ek Shayar Se Pala Padaa Hai /


Pehchaanta  Hun Jab Mujhse Jhooth Bolte Hain Wo
Sach Jankar Har Baar Sar Hilana Padaa Hai /

Kehte Hain Wo, "Tanha" Se Behtar Kai Hain ,
Taras Khakar Mujhpe Unko Aana Padaa Hai /











REINCARNATION

पुनर्जन्म   ..                       २६ अक्तूबर ,अलसाई दोपहर
मैं एक कवि हूँ 
लिख देता हूँ ..
                   झूठे सच्चे सब गीत /

किसी लकीर पर 
कभी चलता नहीं ..
                          मेरी अपनी इक रीत /

इस युग की मजबूरियाँ 
बदलती जैसे ऋतुएँ ..
                             गर्मी वर्षा या शीत /

कितनी मनभावन 
पर कितनी विवश ..
                           तेरी मेरी प्रीत /

इस जन्म में शायद 
क्यूँ लगता है ..
                    बन न पाएं हम मीत /

सो लिख डाली मैंने 
अगले जन्म की खातिर ..
                                   हम दोनों की जीत .  

..सो लिख डाली मैंने /अगले जन्म की खातिर / हम दोनों की जीत ..