चाहा कब न था कुछ करना
पर ज़िन्दगी से लड़ते लड़ते
लरज़ गयी है धड़कन धड़कन
बिख गया है लहू लहू ..
तन्हाई में रोना बेहतर है
उकता गया हूँ हुजूम में
किससे क्या क्या सुनूं सुनूं
किससे क्या क्या कंहू कंहू ..
इस दौडती भागती दुनिया में
मुझ जैसों का ठिकाना क्या
मैं नादाँ निपट आवारा
मौजे जज़्बात में बहूँ बहूँ ..
रिश्ते तुम्हारे होंगे हज़ार
मेरा दुनिया से बस रिश्ता एक
दुनिया करे है ज़ुल्म बराबर
और मैं चुपचाप सहूँ सहूँ ..
चाहा कब न था कुछ करना
पर ज़िन्दगी से लड़ते लड़ते
लरज़ गयी है धड़कन धड़कन
बिख गया है लहू लहू ..
पर ज़िन्दगी से लड़ते लड़ते
लरज़ गयी है धड़कन धड़कन
बिख गया है लहू लहू ..
तन्हाई में रोना बेहतर है
उकता गया हूँ हुजूम में
किससे क्या क्या सुनूं सुनूं
किससे क्या क्या कंहू कंहू ..
इस दौडती भागती दुनिया में
मुझ जैसों का ठिकाना क्या
मैं नादाँ निपट आवारा
मौजे जज़्बात में बहूँ बहूँ ..
रिश्ते तुम्हारे होंगे हज़ार
मेरा दुनिया से बस रिश्ता एक
दुनिया करे है ज़ुल्म बराबर
और मैं चुपचाप सहूँ सहूँ ..
चाहा कब न था कुछ करना
पर ज़िन्दगी से लड़ते लड़ते
लरज़ गयी है धड़कन धड़कन
बिख गया है लहू लहू ..
उम्दा ख्याल तन्हा जी ..... खामोश रहना बेहतर
ReplyDeleteबहुत सुंदर..!!
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