Friday, 2 December 2011

ज़िन्दगी के बाज़ार में ..


जिस बाज़ार में देखो सबको कुछ न कुछ मिला 
दिल के आराम का मुझको   सामान न मिला      


 आखरी सांस तक वो बस लड़ता ही रहा  
उसे ज़िन्दगी का कोई सफ़र आसान न मिला


सुकूने दिल के लिए क्या कुछ न किया
शहर-दर-शहर घूमता रहा आराम न मिला


मुरीदों के दिलों में महफूज़ था सब लिखा हुआ
किसी दुकान में तनहा का कलाम न मिला  


2 comments:

  1. मुरीदों के दिलों में महफूज़ था सब लिखा हुआ
    किसी दुकान में तनहा का कलाम न मिला... bahut sundar

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