28-09-2008 09:26:29
मैं नहीं लिख सकता ऐसा
मुझे ही कुछ वक़्त के साथ चलने का शऊर न था
फिर मैं कैसे इस वक़्त को बेरहम लिख दूँ /
फिर मैं कैसे इस वक़्त को बेरहम लिख दूँ /
मैंने ही शायद उसे समझने में कोई भूल की हो
तो कैसे उस शख्स को अब मैं बेरहम लिख दूँ /
तोहफा क्या दूँ तुझको इस उलझन में हूँ
नाम तेरे आज मैं अपने सारे जनम लिख दूँ /
यूं बस गए हो तुम जाने का नाम लेते नहीं
सोचता हूँ नाम तुम्हारे कुछ दिल का किराया लिख दूँ /
और कैसे लिख दूँ की अब वो मेरे नहीं हैं
जो दिल में बस गया हो कैसे उसको पराया लिख दूँ
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कुछ तो बदला है
बहुत पहले एक हसीं मंज़र से हुआ था तारुफ़
अब न जाने कंहा वाँ जाने की राह खो गयी /
अब न जाने कंहा वाँ जाने की राह खो गयी /
रेत पर बना के आशियाँ लिख दिया था नाम अपना
ज़ालिम लहर आकर साहिल -ए -समंदर को धो गयी /
देखता रहा उनको रकीब के साथ रुखसत होते
होंठ मुस्कुराते रहे पर मेरी ये आँखें रो गईं /
सफ़र तो वही है हमेशा से जो रहा है कठिन
बस जांबाज़ मुसाफिरों की इस पर कमी हो गयी .
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Tanha Ajmeri
बस जांबाज़ मुसाफिरों की सफ़र पर कमी हो गयी . ...
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