Wednesday, 2 November 2011

GHAZALS


28-09-2008 09:26:29

  
 
मैं  नहीं  लिख  सकता  ऐसा 
 
 मुझे  ही  कुछ  वक़्त  के  साथ  चलने  का  शऊर  न  था
फिर  मैं  कैसे  इस  वक़्त  को  बेरहम  लिख  दूँ   /

मैंने  ही  शायद  उसे  समझने  में  कोई  भूल  की  हो
तो  कैसे  उस  शख्स  को  अब  मैं   बेरहम  लिख  दूँ /

तोहफा  क्या  दूँ  तुझको       इस  उलझन  में  हूँ
नाम  तेरे   आज  मैं  अपने  सारे  जनम  लिख  दूँ /

यूं  बस  गए  हो  तुम  जाने  का  नाम  लेते  नहीं
सोचता  हूँ  नाम तुम्हारे कुछ  दिल  का  किराया  लिख  दूँ /

और     कैसे  लिख  दूँ  की  अब  वो  मेरे  नहीं  हैं
जो  दिल  में  बस  गया  हो  कैसे  उसको  पराया  लिख  दूँ
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कुछ  तो  बदला  है 
 
 बहुत  पहले  एक  हसीं  मंज़र  से  हुआ  था  तारुफ़
 अब  न  जाने  कंहा      वाँ  जाने  की  राह  खो  गयी /

 रेत  पर  बना  के  आशियाँ  लिख  दिया  था  नाम  अपना
 ज़ालिम  लहर  आकर  साहिल -ए -समंदर  को  धो  गयी /

 देखता  रहा  उनको  रकीब  के  साथ  रुखसत  होते
 होंठ  मुस्कुराते  रहे  पर  मेरी  ये  आँखें  रो  गईं /

 सफ़र  तो  वही  है  हमेशा  से  जो  रहा  है  कठिन
 बस  जांबाज़  मुसाफिरों  की  इस  पर  कमी   हो  गयी .
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Tanha Ajmeri  
  बस  जांबाज़  मुसाफिरों  की  सफ़र   पर  कमी   हो  गयी . ...

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