Sunday, 13 November 2011

KUCHH KEHNAA BHI KOI JURM HO JAISE...



by Tanha Ajmeri on Saturday, August 21, 2010 at 7:31pm
कुछ  कहना  भी  कोई  जुर्म  हो  जैसे ...

दौड़ना  बन  चुका  है  निज़ाम   यंहा  का 
आराम  से  चलना  बड़ी  मुश्किल  पर ,
धूप  का  है  चार  सू  दबदबा 
है  छाँव  यंहा  बड़ी  मुश्किल  पर .

मौसम  में  भी  अब  घुल  चुका  है 
गुबार  ज़माने  भर  का  देखो ,
गुलिस्ताँ  गुलिस्ताँ , कुम्हलाया  कुम्हलाया 
अब  है  बरसात  यंहा  बड़ी  मुश्किल  पर .

हर  शख्स  हर  तरफ  करे  मनमानी 
सुनने  को  कोई  भी  तैयार  नहीं ,
किस -किस  को  भला  क्या  क्या  समझायें 
हैं  अल्फाज़  यंहा  बड़ी  मुश्किल  पर .

ग़लत  देखो  या  देखो  बुरा  तुम 
और  ख़ामोश  रहो  तो  बेहतर  है ,
न  पंहुचेगी  तुम्हारी  सदा  कंही  भी 
है  ऐतराज़  यंहा  बड़ी  मुश्किल  पर .

धूप  का  है  चार  सू  दबदबा 
है  छाँव  यंहा  बड़ी  मुश्किल  पर .






KUCHH KEHNA BHI KOI JURM HO JAISE...


2 comments:

  1. chup chap bas dekhte raho ...chup chap sunte raho.. aage badne ki koshish na karna,shaitano ka shahar hai ye....

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  2. बहुत खूब तन्हा जी ..... सभी कुछ मुश्किल सा लगता है यहाँ ....

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