उन्होंने दिया इनाम
ज़माने के सितम का तो पता भी न चला ज़रा
उनसे जो मिला दर्द , मुझसे वो न सहा गया
उनको ढूँढता कैसे मैं इतनी तब्दीलियों में
घर उनके जो जा रहा था वो रस्ता बदल गया
घर उनके जो जा रहा था वो रस्ता बदल गया
एक अश्क़ उनकी भी आँखों से छलक पढ़ा
सुनकर मेरी एक ग़ज़ल उनसे न रहा गया
सुनकर मेरी एक ग़ज़ल उनसे न रहा गया
उनसे हमको खिताब एक और मिल गया नया
निकम्मों की जमात का हमको शेहेंशाह कहा गया
निकम्मों की जमात का हमको शेहेंशाह कहा गया
रुस्वाईओं के शहर से दूर निकल आया "तनहा "
उसके बाद भूलकर भी वो न उधर गया
उसके बाद भूलकर भी वो न उधर गया
उसके बाद भूलकर भी वो न उधर गया ..
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