shayari kya hai ? mujhse poochhte haiN log. mujhe dekh leejiye, dekh leejiye mere taur tareekoN ko. Philhal mujhe padh leeje. thoda andaza ho jayega aapko.ya phir apne ghar bula leejiye .ek shaam mere naam..shart hai ke aap lutfandoz ho jayeNge. kabhi sochta huN ke bewajah maujuda waqt meiN paida hue. Kisi badshaah ki baadshahat meiN rahe hote toh shayad hamara bhi kuchh naam hota. huzoor jaane deeje, shhayar se paalaa na hi padhey toh behtar hai.
Monday, 20 September 2021
Wednesday, 15 September 2021
Be Happy || खुश रहो || خوشرہو ||
Monday, 17 May 2021
Wednesday, 18 September 2019
Ek Taazaa Ghazal aapki nazr.... एक ताज़ा-तरीन ग़ज़ल
चाही थीं खुशबुएँ मैंने तो फिज़ाओं में
धुआँ सा हवा में वो घोलकर चल दिया
जा मिला बेवफा अब किसी ग़ैर से
नाता वो प्यार का तोड़कर चल दिया
खाईं थीं कसमें जो हर मुलाक़ात में
उन सबका वो गला घोंटकर चल दिया
रुख़सत के वक़्त भी आँख उसकी न नम हुई
मुस्कुराके अलविदा बोलकर चल दिया
Friday, 1 February 2019
I will face the music...
दुनिया वाले रख देंगे अब इलज़ाम सर मेरे /
उनके आने से चला सबको पता मेरी रिहाइश का
मोहब्बत के मुक़म्मल हों जैसे सब इंतज़ाम घर मेरे
Tuesday, 13 December 2011
मैं चलूँ बिन बैसाखी ..
tanha's space:Write What Your Heart Tells You To...
Who Doesn't Need INSPIRATION??
खुद ही चल पड़े हैं जानिबे मंजिल अब
हमको नए सहारों की तलाश नहीं है
किसी की याद से कर लेते हैं हर ज़र्रा रोशन
अब अंधेरों में चरागों की तलाश नहीं है
निगाहें मिलकर खिला लेते हैं फूल मन में
हरगिज़ अब बहारों की तलाश नहीं है
क्या देखें उनके शहर से चले जाने के बाद
हमको अब नज़ारों की तलाश नहीं है
"तनहा" की किताब का कुछ तो हुआ असर
उनको अब तरानों की तलाश नहीं है
(खुद ही चल पड़े हैं जानिबे मंजिल अब
हमको नए सहारों की तलाश नहीं है)
Friday, 2 December 2011
Wednesday, 9 November 2011
जाते जाते ..
बात पुरानी सी कोई शायद उनको याद आयी
जो उनको इस तरह से यंहा खींच लायी
उनको "तनहा " की मोहब्बत बड़ी याद आयी
उनको "तनहा " की मोहब्बत बड़ी याद आयी . .
Monday, 7 November 2011
मैं ऐसा लिक्खूंगा ..
मैं ऐसा लिक्खूंगा
सोचता हूँ ग़म -ऐ -दौरा से जिस दम निबटूंगा
अपने रूठे हुए साजन के लिए एक नज़्म लिक्खूंगा
मुझे नहीं थीं कभी भी बदगुमानियां उनसे
उनको जो था मुझसे , मैं वो उनका भरम लिक्खूंगा
ज़माने ने रंजिश से भरकर राह में बिछाए कांटे
मुझे जो मिल गयी मंजिलें , उसे मौला का करम लिक्खूंगा
पूछा जो ऊपर वाले ने 'मुझको कंहा दफनाया जाए '
बिन आँख झपकाए मैं एकदम से अपना वतन लिक्खूंगा
हुजूम में रहकर कुछ भी न सीखा ये शायर "तनहा "
सहरा सी वीरान डगर को मैं अपना चमन लिक्खूंगा