Thursday 19 September 2019

faaslaa..... d i s t a n c e

                                                           फ़ासला 


उसने और  मैंने महफ़िल में न की ज़रा भी बात 
बातों से बात निकालने वाले   लोग बहोत से थे 

उस शहर को छोड़कर चले जाना ही ठीक था 
ढकोसले बहोत थे और वहाँ ढोंग बहोत से थे 

Usne aur Maine mehfil mein na ki zara bhi baat 
Baaton se baat nikalne wale log bahut se the 
Us shehar ko chhorhkar chale jaana hi theek tha
Dhakosale bahut the aur wahan dhong bahut se the

Wednesday 18 September 2019

Ek Taazaa Ghazal aapki nazr.... एक ताज़ा-तरीन ग़ज़ल

                                                                    ग़ज़ल  


जिसको ये दिल दिया उसने ही क्या किया            देकर ज़ख्म वो मुझे छोड़कर चल दिया 
Jisko ye Dil diya,usne ye kya kiya
Dekar zakhm wo mujhe chhorhkar chal diya

चाही थीं खुशबुएँ मैंने तो फिज़ाओं में 
धुआँ सा हवा में वो घोलकर चल दिया 
Chahi thi Maine to khisbuein fizaoN meiN
DhuaN sa hawa meiN wo gholkar chal diya

जा मिला बेवफा अब किसी ग़ैर से 
नाता वो प्यार का तोड़कर चल दिया 
Ja mila bewafa ab kisi gair se
Nata wo pyar ka todkar chal diya

खाईं थीं कसमें जो हर मुलाक़ात में 
उन सबका वो गला घोंटकर चल दिया 
KhaeeiN thi kasmein jo har mulaqat mein
Un sabka wo gala ghoNtkar chal diya

रुख़सत के वक़्त भी आँख उसकी न नम हुई 
   मुस्कुराके अलविदा बोलकर चल दिया         
Rukhsat ke waqt bhi aankh uski na num hui    
  Muskura kar Alvida bolkar chal diya
     जिसको ये दिल दिया उसने ही क्या किया 
     देकर ज़ख्म वो मुझे छोड़कर चल दिया 

  Jisko ye Dil diya,usne ye kya kiya
Dekar zakhm wo mujhe chhorhkar chal diya
                 TANHA AJMERI

Friday 13 September 2019

Save Mumbai's Aarey Forest


Save AAREY ......... 
there is no time like NOW

फ़िज़ा में जब   पहले से ही     ज़हर इतना घुला हुआ है
क्यूँ कोई  फिर बर्बादी की कथा लिखने पर तुला हुआ है 

उसके फरमान में इन्सां की सांस का कोई   ज़िक्र नहीं
पर्यावरण की कदर की उसको सच में कोई   फ़िक्र नहीं
अपनी ज़िद पर है आमादा,पर रंग  उसका भी उड़ा हुआ है 
                                      क्यूँ कोई  फिर बर्बादी की कथा लिखने पर तुला हुआ है 
                                       फ़िज़ा में जब   पहले से ही..

तारीख़ इस जंगल की तुझसे मुझसे है कहीं पुरानी
इसके दम पर ही तो हैं हमारी सुबहोशाम  सुहानी
हुआ तू कैसे बेखबर , मुंह तेरा क्यूँ मुड़ा  हुआ है 
                                       क्यूँ कोई  फिर बर्बादी की कथा लिखने पर तुला हुआ है 
                                       फ़िज़ा में जब   पहले से ही..

अब भी वक़्त है   रोक ले ,   तबाही को न मंज़ूर कर
कई और भी तो हैं ज़रुरतें ,   तरक्क़ी तू ज़रूर कर
लिख जा इख्लाख़ की दास्ताँ,रस्ता अब भी खुला हुआ है
                                      क्यूँ कोई  फिर बर्बादी की कथा लिखने पर तुला हुआ है 
                                       फ़िज़ा में जब   पहले से ही..

इन दरख्तों पर है आशियाँ कई परिंदों का बरसों से
जानवर भी कुछ मासूम से यहाँ रह रहे हैं अरसों  से 
ये कहानी हम सबकी है , एक पन्ना तेरा भी जुड़ा हुआ है
                                     क्यूँ कोई  फिर बर्बादी की कथा लिखने पर तुला हुआ है 
                                     फ़िज़ा में जब   पहले से ही     ज़हर इतना घुला हुआ है