Tuesday 31 January 2012

safar ki uljhaneiN ..

न मंजिल पर ही ख़ुशी मिली
न रस्ते में उसका कोई निशाँ मिला /
जो भी शख्स मिला रहगुज़र में
थोडा सा तनहा थोडा
परेशाँ मिला !
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तारीकी में कोई आगे बढे तो कैसे
बिन हमसफ़र इक गाम चले तो कैसे/
जिस के दम से थी थोड़ी सी रौशनी
वो दिया जो बुझा तो
कंहा जला !
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ढूँढ़ते ढूँढ़ते आँखें पथरा गयी हैं
आवाज़ बंद ख़ामोशी छा गयी है/
जिस शहर में सब कहते हैं मैं रहता हूँ
मुझे वन्ही अपना न अब तक
पता मिला !
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इस बाज़ार में हर कोई खरीदार
क्या क्या ढूंढे तोल मोल कर /
जो असल में सिखा दे जीने का हुनर
वो जादुई चिराग़ ही
लापता मिला !
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सफ़र में सब साथ मांगते हैं
घनी धूप में छाँव मांगते हैं /
हमें जो मिलना था वो मिल भी गया
रुसवाईयों का काफिला
शिकस्तों का सिलसिला !
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न मंजिल पर ही ख़ुशी मिली
न रस्ते में उसका कोई निशाँ मिला /
जो भी शख्स मिला रहगुज़र में
थोडा सा तनहा थोडा
परेशाँ मिला !

1 comment:

  1. bahut sundar likha hai...
    न मंजिल पर ही ख़ुशी मिली
    न रस्ते में उसका कोई निशाँ मिला /
    जो भी शख्स मिला रहगुज़र में
    थोडा सा तनहा थोडा
    परेशाँ मिला !

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