Tuesday 27 September 2011

LAFZ

   लफ्ज़ 

लफ्ज़  मेरे
साथ  चलेंगे  तुम्हारे
परछाई  की  तरह
सुनाई  देंगे  कभी  नज़्म  की  सूरत
कभी  रुबाई  की
 तरह
.
लफ्ज़  हैं  सिर्फ  पास  मेरे
तुम्हारे  साथ  चलने  के  लिए
तुमसे  प्यार  करने  के
 लिए
.
अलफ़ाज़  के  अलावा  और  हो  भी  तो  क्या
जिंदगानी  हमारी
की  इन्ही  के  दम  पे  है  टिकी
हमारी  मोहब्बत
-ऐ-जवानी .
जो  चाह  दिल  ने
कर  दिया  लफ़्ज़ों  ने  बयान
जो  चाह  मन 
ने
लफ़्ज़ों  ने  कह  दिया .
लफ्ज़  हैं  सिर्फ  पास  मेरे
साथ
 तुम्हारे  हँसने  के  लिए
तुमसे  कुछ  कहने  के  लिए
.

दिल  ही  में  रह  जाये  हर  बात  दिल  की
तो  फिर  लफ़्ज़ों
 की  ज़रूरत  क्या
लफ्ज़ -लफ्ज़  मन  की  हर  बात  न  बोले
तो  फिर  लफ़्ज़ों
 की  हकीकत  क्या .
लफ्ज़  हैं  सिर्फ  पास  मेरे
तुम्हे  देने  के
 लिए
तुम्हारा  दिल  लेने  के  लिए ,
लफ्ज़  ही  हैं  सिर्फ  पास
 मेरे
और  कुछ  भी  नहीं
और  कुछ  भी  नहीं .

No comments:

Post a Comment