Monday 10 June 2013

THE QUEST

किसी शहर में भी मुझको अपना कोई हमसफ़र न मिला
मकाँ ही मकाँ मिले हर तरफ अपना कोई घर न मिला
.
अंजान शहर में लोगों ने पा लिए रिश्ते कैसे ये बेशुमार
मुझको अपने ही घर में आशना कोई मगर ना मिला
.
मैं ही ग़ुलाम बनकर रहा अपनों का और गैरों का भी
मेरे आगे जो झुक जाता कभी ऐसा कोई सर न मिला
.
रुसवाईओं के शहर में सबसे ज़्यादा रुसवा भी मैं ही था
औ' तन्हाईयों के शहर में मुझसा तनहा कोई बशर न मिला

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