Sunday, 25 September 2011

waqt se parey


तोड़ ही डाले आसमाँ से
जितने भी मिले मुझको ,
अब चाँद भी मुझे चाहिए
  फकत तारों से क्या होगा  /
तिश्नगी बढती गयी
... जितने घूँट मैं  पीता गया,
अब समंदर का मैं  तलबगार
दरिया औ' आबशारों से क्या होगा /

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