तोड़ ही डाले आसमाँ से
जितने भी मिले मुझको ,
अब चाँद भी मुझे चाहिए
फकत तारों से क्या होगा /
तिश्नगी बढती गयी
... जितने घूँट मैं पीता गया,
अब समंदर का मैं तलबगार
दरिया औ' आबशारों से क्या होगा /
जितने भी मिले मुझको ,
अब चाँद भी मुझे चाहिए
फकत तारों से क्या होगा /
तिश्नगी बढती गयी
... जितने घूँट मैं पीता गया,
अब समंदर का मैं तलबगार
दरिया औ' आबशारों से क्या होगा /
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