गरीबी भुखमरी
लाचारी बीमारी
हंसती खेलती
दुनिया अंधी ..
पर्वत जंगल
समंदर आसमां
आज़ाद जानवर
इंसान बंदी ..
बोल मत
चुप रह
ख़ामोशी अच्छी
गुफ्तगू गन्दी ..
दिन छोटे
रातें लम्बी
गर्म अश्क
रूह ठंडी ..
( और फिर करे भी तो क्या कोई, खुद को कंहा तक दबाता रहे बोझ तले , कब सुलझा है दुनिया का ताना बाना ..)
रूह ठंडी ..
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