- मेरे सफ़र में मेरी दौड़ बेहद ही बुलंद है
कोई ज़ंजीर मेरे पैरों से लोहा लेती नहीं /
मंजिल हो नज़र में . न डगमगाएं कदम
ऐसे जाँबाजों को रहगुज़र धोखा देती नहीं - पद में वो जितने ऊंचे होते गए
कद में उतने ही छोटे होते गए /
कर के मुल्क की हालत को पतला
मरियल नेता जी मोटे होते गए .. - अपंग हुकूमत लाचार इंसान -
.
ज़र्रा ज़र्रा बीमार है इस फर्श से उस अर्श तक
आग लग रखी है धुंआ उठ रहा है हर तरफ
.
सीधी होती रहगुज़र तो आसाँ होता ये सफ़र
रास्ते को जहाँ भी देखो मुड़ रहा है हर तरफ
.
कैसे समेट ले कोई खुदको राहतों के दरर्मियाँ
बर्बादी का अफसाना नया जुड़ रहा है हर तरफ .
.
आरज़ुएँ तमन्नाएँ ये पूरी कभी होती ही नहीं
सजदे में सर इंसान का झुक रहा है हर तरफ
.
ज़र्रा ज़र्रा बीमार है इस फर्श से उस अर्श तक
आग लग रखी है धुंआ उठ रहा है हर तरफ - सुना मैंने किसी ने किया है
उनसे बारीक एक सवाल ,
लब उनके लरज़ रहे हैं
वो दे दें जवाब शायद /
ये सोचकर मैं भी
ठहर गया हूँ ज़रा सा ,
इबादत का मुझको मेरी
वो दे दें सवाब शायद
---------------
सवाब : PUNYA in hindi; compensation, reward(esp. of obedience to God.. here..obedience to the lover)
shayari kya hai ? mujhse poochhte haiN log. mujhe dekh leejiye, dekh leejiye mere taur tareekoN ko. Philhal mujhe padh leeje. thoda andaza ho jayega aapko.ya phir apne ghar bula leejiye .ek shaam mere naam..shart hai ke aap lutfandoz ho jayeNge. kabhi sochta huN ke bewajah maujuda waqt meiN paida hue. Kisi badshaah ki baadshahat meiN rahe hote toh shayad hamara bhi kuchh naam hota. huzoor jaane deeje, shhayar se paalaa na hi padhey toh behtar hai.
Wednesday, 31 July 2013
Kuchh alfaaz purane phir se
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment