मैं जिसको अब तलक अपना समझता रहा
उस अफ़साने में देखे क़िरदार हज़ारों थे /
सुकूँ की कश्ती में बैठ गुज़रना दुशवार था
ज़िन्दगी के समंदर में मझधार हज़ारों थे
उस अफ़साने में देखे क़िरदार हज़ारों थे /
सुकूँ की कश्ती में बैठ गुज़रना दुशवार था
ज़िन्दगी के समंदर में मझधार हज़ारों थे
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