Thursday, 1 August 2013

m u s a f i r

ज़िन्दगी है इक जुआ ये बात आयी तब समझ
जब दाव पर अपना था मै सबकुछ लगा चुका /
इक दिया ए उम्मीद की मानिंद रोशन था दिल में जो
तेज़ झोंका इक हवा का कब का उसे बुझा चुका /
वो मुसाफिर था उसे तुम रोक पाते कैसे भला
वो तुम्हारी मंजिलों से दूर कबका जा चुका /
जो हो चुका सो हो चुका यही दुनिया है तनहा मियाँ
फिर आया कहाँ है लौटकर वो काफिला जो जा चुका

Tanha Ajmeri
apni dhun meiN na jaane kaNha se kaNha nikal gaye / hum aise musafir haiN jo manziloN ko bhi chhal gaye

1 comment:

  1. nice lines.
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