Sunday, 24 August 2014

जीना दुश्वार नहीं नहीं

जीना दुश्वार नहीं नहीं 

बन जा मस्त फ़क़ीर

ये कोई जादू नहीं जो इस तरह तबस्सुम लिए फिरुँ हूँ मैं 
अश्क़ लिए ग़मों के पहाड़ के ऊपर बैठके रोया नहीं कभी 
दुनिया की कामयाबी से न जला न रखा ताल्लुक़ कोई 
सुकूँ की चादर ओढ़े सोया चैन अपना खोया नहीं  कभी 
नफरत को न दी तरजीह मैंने उल्फ़त से हर काम किया 
जिसपे बने अदावत का शजर बीज ऐसा बोया नहीं कभी  

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