तअल्लुक़ात
तिरे मिरे राब्ते का दुनिया को कुछ पता तो चले
कह दो तो खोल डालूँ सनम कुछेक राज़ पुराने
घायल हैं कितने ही तेरी तीर ए नज़र से ज़ालिम
क़ातिलाना हैं अब भी तिरे , वो अन्दाज़ पुराने
उन पुरानी चोरियों पर कैसी अब रुसवाईयाँ
नाहक़ छुपाना दुनिया से, वो एहसास सुहाने
ज़िक्रे रूदादे मोहब्बत अब है भी ज़रूरी तनहा
संग हो लेंगें हमारे फिर से, सारे वो नाराज़ पुराने
तिरे मिरे राब्ते का दुनिया को कुछ पता तो चले
कह दो तो खोल डालूँ सनम कुछेक राज़ पुराने
घायल हैं कितने ही तेरी तीर ए नज़र से ज़ालिम
क़ातिलाना हैं अब भी तिरे , वो अन्दाज़ पुराने
उन पुरानी चोरियों पर कैसी अब रुसवाईयाँ
नाहक़ छुपाना दुनिया से, वो एहसास सुहाने
ज़िक्रे रूदादे मोहब्बत अब है भी ज़रूरी तनहा
संग हो लेंगें हमारे फिर से, सारे वो नाराज़ पुराने
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