अपनी ज़ात से
बाहर निकल
तुम देखते कुछ
मंज़र और भी /
बिन धूप औ' पानी
... चमन में फूल
खिलते
तो खिलते कैसे भला /
लिए बर्फीले हाथ
और
ठंडा जिस्म
और ठंडी जाँ /
तुम
गर्मजोशी से
मिलते
तो मिलते कैसे भला ..
बाहर निकल
तुम देखते कुछ
मंज़र और भी /
बिन धूप औ' पानी
... चमन में फूल
खिलते
तो खिलते कैसे भला /
लिए बर्फीले हाथ
और
ठंडा जिस्म
और ठंडी जाँ /
तुम
गर्मजोशी से
मिलते
तो मिलते कैसे भला ..
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