Sunday, 22 July 2012

बेज़ुबाँ को जुबां मिल जाये जैसे ...

" ये तो कोई भी मर्द कह सकता था" विक्रम मानसी से बोला .

"नहीं, कोई दूसरा नहीं " मानसी ने जवाब दिया.

"अरे"

"अरे क्या, एक बार फिर से कहो न ?"

"मैंने महज़ यही तो कहा कि जब तुम मुझसे बात करती हो तो मुझे लगता है की मेरा भी कोई है"

... "हाय , कितना शायराना .. "

विक्रम मानसी को देखता रहा.. क्या सचमुच, यह मौसम का असर हो सकता है ?

है ये क्या चीज़ जिसको मोहब्बत कहते हैं  ? कैसे हो जाता है इसका इज़हार चाहे अनचाहे ??

क्या बरसात से पहले लोग ऐसे हो जाते हैं या फिर था ये विक्रम की बातों का अंदाज़ या सलीका ?

अनायास ही दोनों ने एक साथ खिड़की से बाहर देखा .

चाँद बदली में छुपना चाहता था.
 
 
 

Thursday, 5 July 2012

dayare se baahar

Unshackle yourself.
अपनी ज़ात से
बाहर निकल
तुम देखते कुछ
मंज़र और भी /
बिन धूप औ' पानी
... चमन में फूल
खिलते
तो खिलते कैसे भला /
लिए बर्फीले हाथ
और
ठंडा जिस्म
और ठंडी जाँ /
तुम
गर्मजोशी से
मिलते
तो मिलते कैसे भला ..